स्कूल के दिनों की बात है... नज़्म...मेरी कलम से... 28/mar/2019
*नज़्म* स्कूल के दिनों की बात है स्कूल के दिनों की बात है जब हम स्कूली बच्चे थे पढ़ना , लिखना जानना , समझना खेल छोड़ स्कूल के लिये और पढ़ क्लास में यह भी एक प्रेसर जैसा था क्यूँकि स्कूल जाना वह खेल से इस्तीफा दे कर बड़ा मुश्किल-सा फैसला होता है जब खेलने वाले बच्चे से पढ़ने वाले बच्चे में तब्दील होते है तो थोड़ा समझना पढता है माहौल को और स्कूली स्वभाव को गर स्कूल का स्वभाव मन के भाव को भा जाता है तो खेल न टाइम और न ही ज्यादा खेल का मन होता है सब कुछ अच्छा होता है स्कूल में जब हम खुद स्कूली स्वभाव में अपने को मेहनती और ज्ञान के करीब पाते है तो तब हम स्कूली बच्चे बन जाते है | मेरी कलम से... सुहैल अनवर https://iamsuhailanwar.wordpress.com