"Daur-E-Waqt (Nazm-E-Majmoon)"... Meri Kalam Se...

"दौर-ए-वक़्त (नज़्म-ए-मजमून)"

एक दौर यह है
न अपना है न पराया है

एक दौर वह था
जब पराया भी अपना था

और उस दौर में वक़्त की कीमत थी
और आज वक़्त होते हुए भी कोई कीमत नहीं

आखिर हुआ क्या की लोग
अपने से पराये हो गये
और पराये से अपने
पर वक़्त आज भी वही है
1 से 12 और 12 से 1
यूंही बस गुज़रता जा रहा है

पर अब वक़्त की कीमत नहीं
लोग अब वक़्त का तकाजा बताते है
खैर कुछ भी हो वक़्त तो वक़्त है
आखिर बदल ही जायेगा |

                 ***
मेरी कलम से... 

By- Suhail Anwar
suhailanwar911@gmail.com 

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